शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

संधिवात एवं स्थुलता

dear dr.sb. ,by chance reached yr blog and it impressed me a lot .It
looked very good in public as well personal interest.I am 48 years old
professor in college, having weight of about 80 kg with height165
cm,suffering from slight osteoarthritis,obesity, tiredness,a little
disturbance in digestion though usually appetite is good.Kindly advise
me to loose weight, become free,fit and full of vitality.At the end of
the day I usually feel tired.I sleep late night about 12pm due to my
study habits.This is the story and pl.diagnose to get relief
with regards and best wishes for yr blog......
बहुदा मैने देखा है कि सन्धिवात और स्थुलता का आपस मे घनिष्ठ सम्बंध है । मोटापे के कारण सन्धिवात हो जाया करता है
सबसे पहले तो आप अपनी दिनचर्या को ठीक किजिये । फ़ास्ट फ़ुड, ज्यादा तली हुए पदार्थ, बार-बार खाना और ज्यादा चाय पीना इन सब को छोड दिनिये। योग किजिये ।

आयुर्वेदिक चिकित्सा--- स्थानिक प्रयोग पंचगुण तैल और महामाष तैल दोनो मिलाकर और उसमे अश्व्गन्धा चुर्ण मिलाकर उसकी लुग्दी बना ले उसको गर्म करके रोटी कि तरह की सेप बनाकर प्रभावित स्थान पर लगा दें और उपर से कोई कपडा बान्ध दे । अगर आप ये सब कुछ ना कर सकते हो तो केवल उपरोक्त तैलों से मालिश करने के बाद सेक करें
सिहँनाद गुगुल वटी ५०० मि. ग्रा.
कुमार्यासव एवम महारासनादि क्वाथ दोनो १० -१० मि.लि. तथा समान मात्रा मे पानी मिलाकर (जितना पुराना मिल जाये उतना ही अच्छा )
सुबह शाम खाना खाने के बाद दिन मे दो बार
रात को सोते समय एरण्ड तैल एक चमच दुध मे मिलाकर ले ।
इसके अतिरिक्त आप दिन मे कभी मत सोये, हमेशा पानी कोष्ण और भोजन करने से पहले ले , बाद मे पानी मत पियें
क्योकि उम्र बढ्ने के साथ साथ वात दोष की भी वृद्दि होती है अत: आप लगातार इन औषधियों का सेवन किजिये अवश्य ही आपको स्वास्थय लाभ प्राप्त होगा

मल्टीपरपज औषधि रसोंत ( रसाञन्जन) Extract of berberis aristata

यह काला पन लिये हुए भुरे रंग की गोंद जैसी मुलायम और पानी और मदिरा मे घुलने वाली औषोधि होती है , बाजार मे कई प्रतिषिठ कम्पनीयाँ इसे शुद्ध अवस्था मे बेचती हैं । दारु हल्दी के क्वाथ और बकरी के दुध से इस औषधि को बनाया जाता है ।

गुण-- यह कटु , तिक्त, कफ़ , विष तथा नेत्र रोग को दुर करने वाला , उष्ण वीर्य , रसायन , छेदन, एवम व्रण सम्बन्धित रोगों को दुर करने वाला होता है ( भाव प्रकाश)

प्रयोग- खुनी बवासीर _ २५० मि. ग्रा. दिन मे दो बार ताने पानी के साथ और साथ मे इसबगोल पाउडर आधा चमच रात को एक बार ताजे पानी के साथ ,

स्थानिक प्रयोग के लिये- रंसोत को पानी मे घोल कर गुदा प्रक्षालन करें , अर्शांकुर( मस्से) कुछ समय बात समाप्त हो जाएंगे।

हर प्रकार के नेत्राभिष्यंद( आई फ़्ल्यु) ---शुद्ध रसोंत को गुलाब जल मे घोलकर दो दो बुन्दे डाले बहुत फ़ायादा होता है

मुखपाक -- इसका क्वाथ का कुल्ला करने से फ़ायदा होता है ।

सभी प्रकार के घावों मे शहद और रसोंत को मिलाकर लगाने से बीटा डीन से जल्दी घाव को ठीक कर देता है ।

विषम ज्वर ( मलेरिया) मे १ - १ ग्रा. दिन मे दो बार लेने से फ़ायादा होता है ।

शुद्ध रसोंत को चेहेरे की फ़ुन्सियो पर लगाने पर उनको ठीक कर देता है

मंगलवार, 7 अप्रैल 2009

chronic Rhinitis (पीनस, पुराना नजला)

कई बार साधारण जुकाम , अपथ्य पालन करने पर या चिकित्सा न करने पर दुष्ट पीनस या नजले का रुप प्राप्त कर लेता है ,बार-बार छींको का आना, अत्यधिक नासा स्राव, श्लेष्मा से नाक का भरा रहना, आँखों मे लाली व स्राव, विपरित गन्ध आना, सिर मे दर्द, आदि दुष्ट पीनस मे निम्न्लिखित विकृतियाँ स्थाई रुप से आ सकती है -- श्लैष्मिक कला का जीर्ण शोफ़, नासास्रोत का कफ़ से भरा रहना, गन्ध्ग्राही केन्द्र की विकृति, वायु विवर( साईनस) का स्थाई विकार,

आयुर्वेदिक चिकित्सा व्यवस्था--१ शिरो विरेचन से गाढे कफ़ को निकालना, २ विरेचन ३ एनिमा ( आस्थापन) ४ कवलग्रह ( औषधि युक्त क्वाथ मुख मे रखाना) ५ निवात स्थान ६ शिर पर गर्म कपडा रखना ७ रुक्ष यवान्न सेवन( रुखे अन्नो का सेवन) और हरितिकी सेवन

चित्रक हरितकी, लक्ष्मि विलास रस, हरिद्रा खन्ड, सुतशेखर रस, व्योषादि वटी, तालीशादि चुर्ण, षडबिन्दु तैल नस्य, च्यवनप्राश, द्राक्षारिष्ट , आदि औषधियाँ भी बहुत ही हितकर है

सोमवार, 6 अप्रैल 2009

उपवास(लंघन) का महत्व

लंघन आंतरिक शुद्धि का सर्वोत्तम साधन है।विरेचन, पसीना, और एनिमा शरीर की शुद्धि की क्रियाएं भीतर का मल निकल देने वाली है ।किन्तु लंघन (उपवास) इन सबसे भिन्न है। लंघन का अर्थ यह है कि आवश्यकता और बलाबल के विचार से दो चार दिन खाने को ना लिया जाए , जिससे जठाराग्नि भीतर के उस सम्पुर्ण मल को भस्म कर डाले , जो रोग का कारण हो रहा है । पेट को नित्य भरते रहना और पाचक चुर्णॊं तथा औषधियों द्वारा मलों को पचाने की आपेक्षा , यह अचछा है कि पेट को कुछ आराम दिया जाए।

उपवास करने की विधि अत्यंत सरल है , आरम्भ मे अपने स्वभाव के कारण खाने का समय आने पर पेट खाने को मांगता है ,किन्तु कुछ समय ऎसा कष्ट होता है । तत्पश्च्यात कोइ दूखः नही जान पडता ।जो मोटे ताजे हो या जिनके शरीर पर चर्बी कि अधिकता हो उनके लिये ४-५ दिन उपवास करना कठिन नही। आरम्भ मे कुछ समय पर प्यास लगने पर मात्र जल पीना चाहिये । उसके बाद भुख लगने पर वेजीटेबल सूप लेना चाहिये। तत्पश्यात कुछ दिन तक दही का नुचडा पानी , फ़िर दुध ।

इस प्रकार शरीर के सम्पुर्ण मल और विषैले पदार्थ भस्म होकर शरीर मे नई शक्ति , स्फ़ूर्ति,नया रक्त , और नव-जीवन प्राप्त होता है।

उपवास समाप्त काने के कुछ दिन पीछे तक दलिया, थोडा घी पडी हुई खिचडी, शाक-भाजी, और दुध-दही का सेवन करना चाहिये। फ़िर नित्य का भोजन करने लगें।